शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2009

लाइफ है मस्ती

लाइफ है मस्ती, यहाँ खुशियाँ हैं सस्ती.
खाना पीना गाना बजाना, लगा रहे ये ताना बना.
इसमें ही टाइम बीत जाना. फिर किसको पता किसने लौट के आना.


लाइफ है मस्ती, यहाँ खुशियाँ हैं सस्ती.
कोई गम नहीं, न ही कोई गिला. दोस्त बना लिया जो भी मुझे मिला.
पेंन्शन की टेंशन छोढ़ दे, किसको क्या पता कल को क्या हो भला.

लाइफ है मस्ती, यहाँ खुशियाँ हैं सस्ती.
असली कमाई खुशिओं का एहसास है , तुझको क्या करना किसने जमा किया कितना.
जितने पल खुश नहीं वेस्ट किया उतना.

लाइफ है मस्ती, यहाँ खुशियाँ हैं सस्ती. 

गुरुवार, 16 अप्रैल 2009

रचनात्मकता की चुनौती – जब चाहें तभी रचनात्मक बनें

कईं बार हम कुछ ऐसी समस्याओं से घिर जाते हैं जब हमें रचनात्मकता से कुछ हल तलाशने होते हैं और वह भी जल्दी। तब हमें कुछ भी नहीं सूझता। तब हम सब क्या करें जिससे हम उस समय की मुसीबत भरी घड़ी से बाहर आ जाएँ। इसका उत्तर मुझे एक अंग्रेजी चिठ्ठे में मिला। उसमें निम्नलिखित कदम लिखे थे –

1. लक्ष्य का पता लगाना।
2. जानकारी की खोजबीन या उसे खंगालना
3. चुनौतियों का पता लगाना (कौन-कौन सी चीज़ों में अड़चने हैं या किस-किस चीज़ से वह अड़चनें हैं)
4. सम्सयाओं के हल के लिए विचारों और विकल्पों की फैहरिस्त तैयार करना
5. चुने हुए विचारों को अमल में लाने के लिए प्लान या योजना बनाना

:-):-):-)

वैसे इस क्रीयेटिविटी चैलेंज टॅक्नीक ने कुछ नया तो नहीं बताया। जो चीज़ें इसका भाग हैं वह हम सभी को पहले से ही मालूम हैं। फिर नया क्या है। मेरे ख्याल में यह नया है की हमें पता है कि हमें क्या करना है। हमें यह पता है कि हमें यह ही करना है और कुछ नहीं। हमें मालूम है कि हमारी समस्या का हल इधर से ही निकलेगा। तो जब हमारे पास समस्या हो तो हमें अपने आत्मविश्वास को कायम रखने में एक बहोत बड़ा साहारा मिलेगा क्योंकि हमें यह तुरंत पता है कि हमें क्या करना है। :-)

मगर इसको कामयाब बनाने में हमें बहोत सारा अभ्यास करना होगा क्योंकि बिना अभ्यास से सबसे अच्छी तकनीक भी सिर्फ़ एक किताबी पहलू बन कर रह जाती है। :-)

तो अब हमें अपने ध्यान का केंद्र अभ्यास को बनाना होगा। अभ्यासिए उदाहरण के लिए में पाठकों के लिए एक रचनात्मकता की चुनौती देते हुए एक अधूरी संक्षेप कहानी दे रहा हूँ जिसे आपने 200 अक्षरों में पूर्ण करना है। :-) --

एक बार एक देश के राजा की शादी नहीं हो रही होती है। उसका कारण उस राजा का गंजापन था। उसके आलावा उसका कारण था कि राजा सबसे सुन्दर युवती को ही अपनी रानी बनाना चाहता था। मगर जो युवती राजा को पसन्द आती वह राजा का प्रस्ताव यह कह कर ठुकरा देती की राजा के सिर पर बाल को नामो-निशान न था।

राजा की उम्र ढलती जा रही थी। इस कारण राजा बहोत मायूस रहने लगा था। उसकी यह मायूसी उसकी छोटी बहन, राजकुमारी चम्पावती से देखी नहीं जाती।

एक दिन अचानक चम्पावती महल से गायब हो गई। पहले से ही परेशान राजा पर मानो मुसीबतों का पाहाड़ टूट पड़ा। उसने चम्पावती को खोजने में रात दिन एक कर दिए मगर वह कहीं न मिली। राजा ने चम्पावती की ख़बर देने वाले के नाम बहोत ही बड़ा ईनाम रख दिया। फिर भी चम्पावती का कुछ पता न चला।

कईं वर्ष बीतने पर राजा के राज्य में एक बार एक घोड़-सवार का आगमन हुआ। मालूम पड़ा की वह दूर किसी देश की राजकुमारी की ओर से राजा के लिए विवाह प्रस्ताव लाया है। साथ ही में राजा के लिए भेंट के तौर पर उस राजकुमारी की एक प्रतिमा भी थी।


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इसके आगे कि कहानी एक रचनात्मकता की चुनौति के रूप में आप पाठक गण पूरा कीजिए। :-) इसे आप इस चिठ्ठे की टिप्पणी के रूप में लिख सकते हैं। :-)
मैं आप सभी को विश्वास दिलाता हूँ कि यह करने में आपको खूब आनंद आएगा। :-)

शुक्रवार, 3 अप्रैल 2009

आत्मविश्वास कैसे विकसित करें


आत्मविश्वास हमारी आत्मा का आश्रय है, कुछ करने की प्रेरणा है, कुछ पाने का प्रोत्साहन है। कामयाबी और आत्मविश्वास का एक गहरा आपसी सम्बन्ध है और वह एक दूसरे के पूरक हैं। छोटे से छोटे काम में कामयाबी के लिए हममें आत्मविश्वास का होना बहुत ज़रूरी होता है और हमारे आत्मविश्वास को बड़ाने में छोटी से छोटी कामयाबी उतनी ही सहायक होती है।

आत्मविश्वास की कमी से हममें असुरक्षा और हीनता का आभास होता है। अगर हमारा आत्मविश्वास कम हो तो हमारा रवैय्या नकारात्मक् रहता है और हम तनाव से ग्रस्त रहते हैं। नतीजतन हमारी एकाग्रता भी कम हो जाती है और हम निर्णय लेते समय भ्रमित और गतिहीन से हो जाते हैं। इससे हमारा व्यक्तित्व पूरी तरह से खिल नहीं पाता। ऐसे में सफलता तो कोसों दूर रहती है।

आत्मविश्वास की कमी के दुःष्परीणाम् जान लेने के पश्चात यह हमारा फ़र्ज़ बनता है कि हम इसे बड़ाने के कदम उठायें क्योंकि हम सभी अपने अपने कामों में सफलता चाहते हैं।

हमें सबसे पहले यह जान लेना आवश्यक है कि आत्मविश्वास क्या है
हर परिस्थिति एक व्यक्ति से कुछ अपेक्षा करती है और हर व्यक्ति की उस अपेक्षा को पूरा करने की अलग-अलग क्षमता होती है। अगर किसी स्थिति की अपेक्षा उसकी क्षमता से ज़्यादा हो तो वह आत्मविश्वास की कमी महसूस करता है। और अगर उसकी क्षमता उस स्थिति की अपेक्षा पूरी करने के बराबर हो तो वह आत्मविश्वास से भरपूर महसूस करता है।

इसलिए आत्मविश्वास को कायम रखने के लिए हम यह साफ़ तौर पर देख सकते हैं कि एक तरफ़ तो हमें परिस्थितियों से जूझने की अपनी क्षमता को बड़ाना चाहिए और दूसरी ओर हमें दुर्गम परिस्थितियों की अपेक्षाओं को सम्भालना सीखना चाहिए।

हम परिस्थितियों से जूझने की अपनी क्षमता कैसे बढ़ाएं ?
हमें सर्वप्रथम् ख़ुद को अपनी ही नज़रों में उठना पड़ेगा। इसलिए हमें देखना पड़ेगा की हम कभी अपने को किसी से कम न समझें और न ही किसी और के साथ अपना मुल्याँकन करें या करने दें। यह जान लें कि हम सब अपनी-अपनी जगह पर सही व पूर्ण हैं। और जब-जब हम अपनी तुलना किसी और से करते हैं तब-तब हम अपने साथ एक बहुत बड़ा अपराध करते हैं।

आत्मविश्वास को बड़ाने की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम होगा जब हम ख़ुद को मायूस कर देने वाले व्यक्तियों व नकारात्मक् परिस्थितियों से कोसों दूर रखें क्योंकि यह हमारे आत्मविश्वास को एकदम क्षीण कर देती हैं। इनसब के विप्रीत हमें अपना उत्साह बड़ाने के लिए ख़ुद को सकारात्मक् वैचारिक-संदेश देते रहना चाहिए – मैं सबसे श्रेष्ठ हूँ, पूरा हूँ, सम्पूर्ण हूँ। मुझमें कोइ कमी नहीं है। मैं कोइ भी कार्य करने में सक्षम् हूँ। मैं सही हूँ।...

कई बार अपने में आत्मविश्वास जगाने के लिए आत्मविश्वास से भरपूर व्यक्ति का अभिनय करना या उस जैसा बर्ताव करना काफ़ी मददगार साबित होता है। एक आत्मविश्वास से प्रफुल्लित व्यक्ति के शारीरिक संकेत कुछ खास होते हैं। उसके चहरे के हाव-भाव विश्रामपूर्ण होते हैं जिससे आत्मविश्वास और प्रभावनीयता झलकती है। उसकी शारीरिक क्रीया आरामदाय, सहज व शाँत होती है। उसकी दृष्टी सीधी, ध्यानपूर्ण, रूचीपूर्ण और प्रभावशाली होती है। उसकी आवाज़ सुरीली व आसानी से सुने जाने की सीमा तक ऊँची होती है।

कहते हैं -- पहली छाप ही आपकी अंतिम छाप होती है -- इसलिए हमें अपनी दिखावट, वेशभूषा, बर्ताव इत्यादी को ठीक-ठाक रखना चाहिए जिससे कि अन्य व्यक्ति पर अच्छा प्रभाव पड़े। हमें निरंतर अपने सामान्य-ज्ञान को बड़ाते रहना चाहिए। इन सभी उपरोक्त कदमों से हम ख़ुद को अपनी ही नज़रों में उठा पायेंगे। और अगर इन सब के बावजूद हम कभी गलत हों तो हमें यह सोचना चाहिए – तो क्या हुआ, तो क्या अगर मैं गलत हूँ, मैं ऐसी ही हूँ। मुझे यही सही लगता है क्योंकि मैंने अपने अनुभव से इसे ही सही जाना है।

कुछ और कदम भी हैं जो हम अपनी जूझने की क्षमता को बड़ाने के लिए ले सकते हैं। जब हम अपने को विलक्षण व कठिन परिस्थितियों में पाते हैं तब उनसे भाग जाने की बजाए हमें उनका डटकर मुकाबला करने को चुनना चाहिए। हमें अपने को हमेशा प्रशिक्षित् करते रहना चाहिए जिससे हम अपने ज्ञान में लगातार वृद्धी करते रहें। हम सब में एक प्रतिभा छिपि रहती है और हमारा उद्देष्य होना चाहिए कि हम वह खोजें व उभारें।

आत्मविश्वास बड़ाने की प्रक्रिया कोई रातों-रात सम्पन्न नहीं होती बलकी धीरे-धीरे नन्हे-नन्हे कदमों को मिला-मिला कर बनती है। इसलिए हमें धीरे-धीरे अपने को कठिन परिस्थितियों से सामना करवा कर और उन पर विजय पाकर आगे बड़ना होगा। कई बार हम विफल होंगे मगर हमें हार माने बिना फिर भी उसी पथ पर चलते रहना पड़ेगा।

कईं बार हम जब कोई कार्य कर रहे होते हैं तभी हम अपना मूल्याँकन करने लग पड़ते हैं और अपनी क्षमताओं पर संदेह करने लगते हैं। हमें यह प्रवृत्ती छोड़ देनी पड़ेगी क्योंकि इनसे हमारा आत्मविश्वास टूट जाता है। इसलिए सिर्फ़ कार्य करो, उसके बारे में सोच- सोच व्यर्थ समय न नष्ट करो। इन सब कदमों से हमारे आत्मविश्वास में बड़ोतरी होती है।

कईं बार तनाव व बेचैनी को संभालने की तकनीक काफ़ी लाभप्रद होती हैं जैसेकि -- शारीरिक तनाव कम करने की तकनीक, गहरे साँस लेने की तकनीक, बुरे परिणामों के बारे में न सोचने की आदत, हर परिणाम में कुछ अच्छा ही देखना, डरने से न डरना (क्योंकि डरना इतनी बुरी बात भी नहीं है -- हम अपने डर पर विचलित होने के बदले यदि उसे ग्रहण कर लें तो हम उस पर अपनी एक पकड़ बना सकते हैं)।

कुछ और मददगार तकनीकें हैं जैसेकि -- अंदर से बेचैनी होने पर भी उसे दूसरों को ज़ाहिर न होने देना, अपने जीवन के अच्छे पलों को याद करते रहना। और जो सबसे महत्वपूर्ण है -- अभ्यास, अभ्यास, अभ्यास।

इस तरह हमने जाना की कैसे हम दुर्गम परिस्थितियों से जूझने की क्षमता को बड़ा कर हम अपने आत्मविश्वास को बड़ा सकते हैं। अब हम यह जानने की कोशिश करते हैं कि हम इन परिस्थितियों की अपेक्षाओं को किस प्रकार बख़ूबी से संभालें जिससे हमारे आत्मविश्वास में सेंध न लगने पाए। सबसे पहले हमें अनुप्युक्त और असंगत अपेक्षाओं को कम करने की ओर ध्यान देना चाहिए।

यह तभी सम्भव है जब हम पूर्णतावादी बनना बंद करें। हमें यह समझ लेना चाहिए कि हम हर काम पूर्णता व पराकाष्ठा से नहीं कर सकते क्योंकि हम कोई भगवान नहीं हैं। और ऐसा ध्यय रखना अपनी शक्तियों पर बे वजह ज़ोर डालना ही होगा। हमें औरों को बे-वजह हर समय प्रभावित करना व उनकी वाह-वाही लूटने की चाह को भी छोड़ना पड़ेगा। कईं बार किसी-किसी को न कहने की या मना करने की आदत डालनी पड़ेगी। हम हर वक्त हर कहा गया काम करनें में जुट जाएँ तो एक काम भी ढंग से पूरा नहीं कर पाएँगे और नतीजा होगा -- आत्मविश्वास में सेंध।

फिर हम कईं बार कुछ अपेक्षित कठिन परिस्थितियों के लिए अग्रिम या पहले से ही योजना बनाकर उनके लिए तैयार रहें तो भी हमारा आत्मविश्वास अडिग रह पाता है। कुछ गैर ज़रूरी कामों को या ऐसे कामों को जो कोई अन्य व्यक्ति ज़्यादा बखूबी कर सकतें है औरों को सोंपने या प्रत्यायुक्त करने से अपने से अपेक्षाओं को काबू में रख सकतें हैं। अपने से अपेक्षाओं को महत्व अनुसार क्रमबद्ध करने पर भी हम उनपर अपनी पकड़ को संभाल सकते हैं और अडिग रह सकते हैं। इन सब कदमों के अलावा हम अपने विचारों में यह हमेशा अपने को याद दिलाते रहें कि अपनी तरफ़ से प्रयास सर्वोत्तम् रखो और बाकी ख़ुदा पे छोड़ दो।

इस तरह की तकनीकों व विचारों से हम अपने आत्मविश्वास को कायम रखने में कामयाब रहेंगे। मैं आशा करती हूँ कि इस जानकारी से आप सदैव आत्मविश्वास से ओत-प्रोत रहेंगे और अपने जीवन में सफल रहेंगे क्योंकि सफलता और आत्मविश्वास का गहरा नाता है।

रविवार, 22 मार्च 2009

हमारे पर हमारे माँ-बाप का असर

मुझे अपने माता पिता में इतनी सारी कमियाँ दिखती हैं। ज़ाहिर सी बात है उसमें उन की कोई गलती नहीं क्योंकि वह उन्हें उनके माँ बाप या उनके हालात से मिलीं। और ये भी ज़ाहिर सी बात है कि इनमें से कईं मुझ में होंगीं। मुझे ढूँढ ढूँढ कर अपने में उन कमियों को खोजना है और उन्हें अपने से निकालना है।

क्या ऐसी कोई तकनीक नहीं है जिसमें हम अपने में मौजूद कमियों को ढूँढते हैं और पाने पर उन्हें अपने से निकालने की प्रक्रिया करते हैं। ज़रूर ऐसी कोई तकनीक होगी और हमें सबसे पहले ऐसी तकनीक को खोजना है और ऐसी तकनीक का आचरण किए हुए उस व्यक्ति से उसके अनुभव को जानना है।

कुछ विचार जो ज़हन में आते हैं कि एक हो सकती है वह है विपाश्यना जिसमें आप खुद का निरीक्षण करते हैं जिसमें शारीरिक व मानसिक निरीक्षण शामिल होता है। चलो ये मान लिया कि पूर्वी चिन्तन का ये एक नमूना है और इससे मिलते जुलते कुछ और चिन्तन भी ज़रूर मिल जाएँगे।

एक लाभकारी कदम होगा कि हम कुछ पश्चिमी चिन्तन में भी कुछ इस मुद्दे से जुड़े़ कुछ विचारों को खोजें। यह खासकर इसलिए भी ज़रूरी हो जाता है क्योंकि पश्चिमी विचार-धारा अब सिर्फ पश्चिमी विरासत न रहके बलकि एक वैश्विक विचार-धारा बन चुकी है। इसमें सिर्फ पश्चिमी विचारकों का ही नहीं योगदान है बलकि पूर्व के चिन्तक भी इस विचार-धारा के पूरक हैं।

जो एक तकनीक या विचार धारा मेरे ज़हन में आती है वह है ट्राँज़ॅक्षनल अनॅलिसिस् जिसमें यह माना जाता है कि हम अपने माँ बाप कि अच्छी व बुरी आदतों के सम्वाहक होते हैं।

शनिवार, 21 मार्च 2009

मार्च की दावत

कल हम सभी बाहर खाना खानें गये। ये तो नहीं कह सकते की बहोत मज़ा आया, मगर मज़ा तो ज़रूर आया। ये देखें की क्यों मज़ा आया :
  • क्योंकि खाना स्वादिषट था,
  • क्योंकि हम काफ़ी समय बाद बाहर खा रहे थे,
  • क्योंकि यह रोज से थोड़ा हट कर था,
  • क्योंकि इसमें सभी ने अपनी मन पसंद व्ञनजन खाए,
  • क्योंकि हमें न कहीं जाने की जल्दी थी न ही कहीं पहोंचने की,
  • और अंत में जो सबसे महत्वपूर्ण कारण था – पेट भर खाने से किसे मज़ा नहीं आता। पेट भरते ही हमारे परिवार का शेर भी भीगी बिल्ली बन चुका था।