क्या ऐसी कोई तकनीक नहीं है जिसमें हम अपने में मौजूद कमियों को ढूँढते हैं और पाने पर उन्हें अपने से निकालने की प्रक्रिया करते हैं। ज़रूर ऐसी कोई तकनीक होगी और हमें सबसे पहले ऐसी तकनीक को खोजना है और ऐसी तकनीक का आचरण किए हुए उस व्यक्ति से उसके अनुभव को जानना है।
कुछ विचार जो ज़हन में आते हैं कि एक हो सकती है वह है विपाश्यना जिसमें आप खुद का निरीक्षण करते हैं जिसमें शारीरिक व मानसिक निरीक्षण शामिल होता है। चलो ये मान लिया कि पूर्वी चिन्तन का ये एक नमूना है और इससे मिलते जुलते कुछ और चिन्तन भी ज़रूर मिल जाएँगे।
एक लाभकारी कदम होगा कि हम कुछ पश्चिमी चिन्तन में भी कुछ इस मुद्दे से जुड़े़ कुछ विचारों को खोजें। यह खासकर इसलिए भी ज़रूरी हो जाता है क्योंकि पश्चिमी विचार-धारा अब सिर्फ पश्चिमी विरासत न रहके बलकि एक वैश्विक विचार-धारा बन चुकी है। इसमें सिर्फ पश्चिमी विचारकों का ही नहीं योगदान है बलकि पूर्व के चिन्तक भी इस विचार-धारा के पूरक हैं।
जो एक तकनीक या विचार धारा मेरे ज़हन में आती है वह है ट्राँज़ॅक्षनल अनॅलिसिस् जिसमें यह माना जाता है कि हम अपने माँ बाप कि अच्छी व बुरी आदतों के सम्वाहक होते हैं।
8 टिप्पणियां:
post achchi hai maa or pitaji ki charcha wese kam hi log kar pate hai ..par aapne ki hai kuch achchi baato ka samawesh hai isme ...jai ho...
तकनीक है आदर्श बदल ले
ब्लोगिंग जगत में स्वागत है
उत्तम! अति उत्तम!
लगातार लिखते रहने के लिए शुभकामनाएं
कविता,गज़ल और शेर के लिए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
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most wellcome...dear...good thought...plz continue...
यहां मुज़्ज़फर हनफी के शेर प्रासंगिक लगते हैं:-
रुख बदलते हिचकिचाते थे कि डर ऐसा भी था,
हम हवा के साथ चलते थे, मगर ऐसा भी था।
पांव आइंदा की जांनिब, सर गुजिस्तां की तरफ,
यूं भी चलते थे मुसाफिर, इक सफर ऐसा भी था।
kami nahi achchhai batao, narayan narayan
सुन्दर है....शुभकामनायें.
आपका हिंदी ब्लॉग जगत में स्वागत है ............
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