- क्योंकि खाना स्वादिषट था,
- क्योंकि हम काफ़ी समय बाद बाहर खा रहे थे,
- क्योंकि यह रोज से थोड़ा हट कर था,
- क्योंकि इसमें सभी ने अपनी मन पसंद व्ञनजन खाए,
- क्योंकि हमें न कहीं जाने की जल्दी थी न ही कहीं पहोंचने की,
- और अंत में जो सबसे महत्वपूर्ण कारण था – पेट भर खाने से किसे मज़ा नहीं आता। पेट भरते ही हमारे परिवार का शेर भी भीगी बिल्ली बन चुका था।
शनिवार, 21 मार्च 2009
मार्च की दावत
कल हम सभी बाहर खाना खानें गये। ये तो नहीं कह सकते की बहोत मज़ा आया, मगर मज़ा तो ज़रूर आया। ये देखें की क्यों मज़ा आया :
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